चलो भाई साब, सब लोग अपने अपने हाथे कै "अक्षत" फैंको, जैसे इनके दिन "बहुरे" वैसे सबके दिन "बहुरे" ! फाईनली "तेरहवें" दिन "अनशन" समाप्त हुआ मगर आप कहीं मत जाइएगा,हम अभी "हाज़िर" होते है बस एक "ब्रेक" के बाद...ऐसा "हम" नहीं खुद "अन्ना" कह रहें है क्योंकि "जीत" अभी "बाकी" है मेरे "दोस्त"...कसम "राजकुमार हिरानी" की पूरे मुल्क पर इस समय " मुन्नागिरी" से ज्यादा "अन्नागिरी" का रंग चढ़ा है ..मै भी अन्ना,तू भी अन्ना,सारा देश है अन्ना और बतर्ज़ "अमौसा का मेला" फेम "डॉ.कैलाश गौतम"....औ अन्ना बेचारे ...टेंशन में ...क्लिअर कर रहे है ..सिर्फ टोपी पहनने से कोई अन्ना नहीं बन जाता है ...मगर क्या करियेगा "मंच" से ही "आप की कचहरी" का "उत्साहवर्धक" फरमान जारी होता है "जो आप को टोपी पहनने की कोशिश करे अब आप भी उसे टोपी पहना दो ...अन्ना वाली" ! "सड़क" की "बात" "संसद" ने मान ली है तो ऐसा कुछ तो होगा ही ...पुरानी कहावत है की "मक्खी" पूरे "खूबसूरत" "जिस्म" को छोड़ कर सिर्फ "ज़ख्म" पर ही बैठती है, सो "आप" तो ये भी कहोगे की "संसद' में "हाथी-साईकिल" का रुख "असहमत" था,इसलिए "इकरा" और "सिमरन" के हाथों से "पेय" पिलवाया ! अपना मुल्क "उत्सवधर्मिता" पसंद है भाई साब, "मंदिर" बनाने के नाम पर, "वर्ल्ड कप" जितने की ख़ुशी में हम तो "जश्न" मनाने निकल ही पड़ते है ! यहाँ "बेकार" की "बातें" मत कीजिये "बुरा" लगेगा.... "झंडे" लहराते,"नारे" लगाते अपने "घर" लौटते लोग तो "मंच" से सुने गए "गानों" की "रिंगटोन" भी "तलाश" करने लगे है... ! कुल मिलाकर, बच्चों ने "रामलीला मैदान" में "अगस्त क्रांति" देख ली और रहा सवाल "सरकार" और "अन्ना" का तो "दोनों" पारम्परिक "पत्र-व्यवहार" ही करते रहे,अब ये अलग बात है की "गैर सरकारी संगठन" "हाईटेक टेक्नोलोजी" का इस्तेमाल करते रहे ! ये "जन-लोकपाल" का अपना अपना "स्टाइल" है भाई साब,उस दिन "मुन्ना भाई" "सर्किट" से अपनी "फिल्म" का "डायलोग" दुबारा कह रहे थे...ए "सर्किट" अभी 65 % "ख़त्म" होने की "उम्मीदें" बढ़ गयी है,रहा "सवाल" 35 % का तो उसके लिए "अन्ना" ने कुछ कहा ही नहीं है ......बहरहाल एक 74 वर्ष की "क्षीण काया" ने इस "मुल्क" में एक बार फिर "साबित" कर दिया है की अगर आपके पास "अड़ियल नैतिकता" और "भूखा" रहने की "विलक्षण प्रतिभा" है तो आप "सदन" की "संप्रभुता" पर भी दबाव बना सकते है वैसे जो भी हो अन्ना ने "जन-जाग्रति" लाने का जो काम किया है वो "अद्भुत" है ! चलते-चलते "रामलीला मैदान" से "अन्ना" के"टोपी" लगाये लोगों से यही "अपील" की है की अगर "अन्ना" बनना है तो आचार,विचार,निष्कलंक जीवन,त्याग और अपमान सहने की शक्ति पैदा करो...अब देखना ये है की "रामलीला मैदान" से "फेसबुक की वाल" और "ट्विटर" तक सर पर "टोपी" लगाये कितने "अन्ना" और "बनते"...माफ़ कीजियेगा "बनने" की "कोशिश" करते है...रहा सवाल "हमारा" तो भाई साब, अपनी भी एक "अदद" "सिविल सोसाईटी" है और अपना भी वही नारा है "पहले" तुम्हे "सुधारेंगे" फिर "हम" तो "सुधर" ही जायेंगे ! "पाप" की शाश्वतता पर "भारत भूषण जी" की एक कविता है जिसमे "पाप" कहता है ..."जन्म" ना लेता जो मै "धरा" पर,तो ये "धरा" बनी "मसान" होती! ना "मंदिरों" में "मृदंग" बजते,ना "मस्जिदों" में "अज़ान" होती ...मगर फिर भी "मन" कर रहा है इसलिए सिर्फ "अन्ना" के "ज़ज्बे" और "सोच" को प्रणाम!!!!
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