कसम "करण जौहर" की भाई साब,सन 1998 ,के बाद हर साल "अगस्त" के पहले "रविवार" के दिन "मनवा" में "हूक" सी उठती है ...यू नो "कुछ कुछ होता है" टाइप की....काश ये हमारे ज़माने में "रिलीज" हुई होती तो कम से कम "दो-चार" को तो "हम" भी "राखी" बाँधने के पहले ही "फ्रैंडशिप बैंड " पहना देते मगर नहीं "तनख्वाह" पाने वाले की किस्मत में "पैकज" कहाँ....खैर हमारे "ज़माने" में भले ही ये "फैसेलिटी" न रही हो लेकिन ये "आज" का "दौर" है जहाँ "अहसासों" को "जताने" का दिन भी "मुक़र्रर" है ! "शायर" फरमाता रहे ...."मुहब्बत" के लिए कुछ "ख़ास" दिल "मखसूस" किये जाते है,ये वो "नगमा" है जो हर "साज़" पे "गाया' नहीं जाता ! अगला कहेगा उठाओ अपना "हारमोनियम" "तबला" "पेटी" कमबख्तों, तुम "सात जन्मों" की "बात" करते हो,यहाँ हम "लिव-इन" बोले तो "साथ-साथ" रहने की "बात" करते है....खैर "खिसियाये" "टीम अन्ना" के "सदस्यों" की तरह "संसद भवन" के बाहर "लोकपाल-विधेयक" की "प्रतियां" फाड़ने से कुछ नहीं होने वाला ! क्यूंकि यहाँ "दिल्ली" और "कर्नाटक" के "मुख्यमंत्रियों" में वही "फर्क" है जो "अवैध खनन" और "कामनवेल्थ घोटाले" में! रेल पटरियों पर भले "हादसे" होते रहे मगर अगला अपने "कमरे" को पाने के लिए "बरामदे"में ही बैठ कर "मंत्रालय" चला लेगा! आप भले ही "महानायक" हो लेकिन एक "मुख्यमंत्री" की "तारीफ" की तो "दूसरा" आपको फ़ौरन "नापसंद" कर देगा ! ये "जिंदगी" है...."मानसून सत्र" "शांति" से चले इसके लिए "ज़रूरी" है कि ना तुम "2G" पर बोलो न हम "कर्नाटक" पर ! "वक़्त" बदलते देर नहीं लगती भाई साब, आपकी "पुअर & स्टैंडर्ड" "रेटिंग" कभी भी AAA से AA + हो सकती है ! देखा नहीं आपने "जंतर-मंतर" के बदले अब "वरुण" "अनशन" के लिए अपनी "छत" "ऑफर" कर रहे है ! इस मुल्क में "मनरेगा" के लिए नए "दिशा निर्देश" जारी करने से कुछ नहीं होने वाला ! दो साल बाद "वन-डे" के बाद के लिए चुनोगे तो अगला "सन्यास" का "ऐलान" कर ही देगा !ये नया "ज़माना" है भाई साब,यहाँ हर "चीज़", हर "दिन" मुक़र्रर है ! हमारे ज़माने में "दोस्ती" का "मतलब" साथ में "बेर" तोडना, "कंचे" खेलना,"बारिश" में भीगना, "किताबों" पर एक दूसरे की तस्वीरें बनाना,और "हेडमास्टर" के सामने दोस्त को "मानीटर" बनवाने के लिए खुद "बीमार" पड़ जाने का "नाटक" करना था.....दोस्ती तो आज भी "जिंदा" है.."मोबाइल" के "मैसज" में,"फेसबुक" के "वाल" पर, "सिनेमा" के "परदे" पर और हाँ "फ्रैंडशिप बैंड " में.."कमाल" तो ये है की "आज" इस "दोस्ती" में "हम" भी "शामिल" है अब ये "अलग" बात है कि "आज" की "दोस्ती" को शायद "हम" "समझ" नहीं पा रहे है ...."दिल चाहता है" और "सेनोरिटा" की धुन के बीच से कहीं एक पुरानी "ग़ज़ल" के "बोल" भी सुनाई दे रहें है...हम दोस्ती,अहसान,वफ़ा सब भूल चुके है,जिंदा है मगर जीने की अदा भूल चुके है....हैप्पी फ्रैंडशिप डे !!!!!!!!!!!!!
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