सीरिअसली भाई साब,आजकल मै कुछ "ज्यादा" ही "वन्दे-मातरम" हूँ ! "कुछ ज्यादा" इसलिए क्योंकि "पूरा" वन्दे-मातरम" आता नहीं है, यू नो "अधजल गगरी छलकत जाये" वैसे भी इस मुल्क में पूरी "बात" पता होना "ज़रूरी" भी नहीं है ! इन फैक्ट मुझे एक अदद "नत्था" की तलाश है जो कह सके की "खटोला" यहीं बिछेगा..."पास" "हमारा" वाला ही होगा ....वो भी "फलां" तारीख तक.... "संशोधन" भी "हमीं" से पूछकर होगा.... "अपने" वाले पर आप "जनता" की "राय" भी मत मांगो...."समय" की "बर्बादी" है ....फ़ौरन "खारिज" कर दो.....बस बाकी का "काम" तो "चौबीस घंटे" चलने वाले "खबरिया चैनल" पूरी कर ही देंगे ! इतना बड़ा एक्सपोज़र मिलने पर "दो-चार" "मयूजिक कम्पोज़र" "एक-आधा" कवि मुफ्त में खुद आ ही जायेंगे ! पब्लिक को "गाँधी टोपी" "तिरंगा" मिल ही जायेगा ! करने के लिए "मैदान" के नाम पर "रामलीला" है ही ..."बैक ड्रॉप" पर "बापू" की "बड़ी" सी "तस्वीर" लगा देनी है...अब आप कहोगे कि "गाँधी" का "कद" तो बहुत बड़ा था..सो व्हाट, "भ्रष्टाचार" के विरुद्ध "आन्दोलन" से "बड़ा" थोड़े था ! आप कहोगे कि लोगों के विभिन्न "मुद्दों" पर असंतोष को "हवा" देकर "लोकतंत्र" को "हाईजैक " कर लेना क्या "उचित" है ! खामोश हो जाइये भाई साब, इस समय "ईमानदार" सिर्फ वही है जो "आन्दोलन" के "पक्ष" में है, बाकी जो भी "विपक्ष" में है या "आन्दोलन" के "तरीके" से "सहमत" नहीं है सब "भ्रष्ट" है ! बाढ़,सेंसेक्स,महाभियोग कि कार्यवाही,माहि कि दुर्गति..सब गई "आइसक्रीम" खाने ! अच्छा है 91-92 वाले "भगवा" आन्दोलन के दौरान "खबर" के बजाये "जो बिकेगा-वही दिखेगा" "लाइव" दिखाने वाले नहीं थे वर्ना मुल्क आज तक अपने रिसते हुए ज़ख्मो से खून साफ़ कर रहा होता !माफ़ कीजियेगा भाई साब, हर "बारिश" में "कृष्ण" नहीं जन्मते है,सन 74 में भी "कालेज छोड़ो" का नारा सुना था !आन्दोलन के बाद मेरे कई नवजवान साथी सिर्फ इसलिए "बेरोजगार" रह गए क्योंकि उनके पास "नौकरी" के लिए "पढाई" नहीं थी ! दोनों आंदोलनों में "जनभावना" इससे ज्यादा ही थी और आज दोनों "जननायकों" के साथ कितने लोग है.... खैर जाने दीजिये अपने प्यारे "इमोशनल" मुल्क में सिर्फ इतना कहना चाहूँगा की शायद ही कोई हो "भ्रष्टाचार" के विरुद्ध ना हो ! इस "आन्दोलन" ने वो "जागरण" कर दिया है कि अब सशक्त "जन-लोकपाल" "जन-भावना" के अनुरूप बनकर ही रहेगा और उससे "प्रभावित" या "लाभान्वित" कोई एक "सरकार" नहीं बल्कि सभी "सरकारें" होगी... चलते-चलते "निदा फाजली" साब का शेर अर्ज़ करता हूँ ...अपना गम ले के,कहीं और न जाया जाये ! घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये ! बाग़ में जाने के भी आदाब हुआ करते है,किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये !! जन्माष्टमी कि मंगलकामनाएं...पार्श्व में स्वर गूंज रहा है..यदा यदा ही धर्मस्य....संभवामि युगे-युगे !!!!!!!!!!
सच कहूँ तो यह अंक ना जाने कितने लोगों की आवाज़ को मुखरित करता है.जन लोकपाल बिल को लोकपाल बिल कहते ही आदमी भ्रष्टाचारी हो जाता है.पूरा का पूरा सरकारी तंत्र भ्रष्ट मान लिया गया है.कई बार तो यह लगने लगा है कि सदियों से अलग-अलग कारणों से त्रस्त हो रही जनता का भावनात्मक दोहन तो नहीं हो रहा.एक ऐसी सोच भी विकसित हो रही प्रतीत होती है कि सारे देश को ईमानदार होना चाहिए सिर्फ स्वयं को छोड़ कर.यह अंक खुद मेरे विचारों की प्रतिलिपि लगता है यद्यपि व्यक्त करने की क्षमता सीमित है.
ReplyDeletebhaiya ye akhiri me "yada yada..." ki jo dhun bajayi hai aapne usme "srijamyaham" anna to nahi hai????
ReplyDeletewah bhai kya baat hai...sach to ye hai ki hamne apne dimag se sochna band kar dia hai esiliye aaj ye sthiti hai...aue abhi bhi nahi soch rahe hai balki doosron ki bhasha bol rahe hai...
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