अच्छा भाई साब,सच-सच बताइयेगा ढाई अरब लोगों ने "शाही शादी" का "नज़ारा" देखा या या फिर "वो" देखा जो "बकिंघम पैलेस" की "बालकनी" में दिखा...वो तो कहिये गलतियाँ रिपीट करने में अपना कभी विश्वास नहीं रहा,दूसरे "वो' कभी तैयार नहीं होगी वर्ना घर की बालकनी पर खड़े होकर ऐसा ही कुछ "शाही कारनामा" करने का अपना भी इरादा था ! यू नो,रातों रात "पापुलर" होने का इससे बेहतर "मौका" अपने को दुबारा नहीं मिलेगा....अब "आप" ही बताइए वो "कौन" है जो "पापुलर"नहीं होना चाहता? "शाही शादी" को देख कर ही ये "ख्याल" आया की "घोटालों" पर तो "क्रीमीलेयर"... बोले तो "कार्पोरेट सेक्टर" की "मोनोपली" है ! उसके बारे में "आम आदमी" "सपना" भी नहीं देख सकता है! हाँ ,वो "शाही स्टाइल" ज़रूर adopt कर सकता है!मुल्क गवाह है की पहले भी "मीका पाजी" से लेकर "रिचर्ड गेर -शिल्पा" "मंडेला-शबाना" "चार्ल्स-पद्मिनी"....एक लम्बी "पापुलर" फेहरिस्त है ...! अब आप ठहरे "सिविल सोसाईटी" के "प्राउड" मेम्बर तो पूछोगे..इससे क्या आपकी भी "रिसेप्सन पार्टी" सुबह तक चलेगी?और हम ठहरे "आदर्श सोसाईटी" के "मेंबर" सो फ़ौरन तड़प कर मत चूको "चौहान" की तर्ज़ पर कहेंगे ,क्यों नहीं चलेगी? जब "विश्व कप" जीतने पर कपडे उतरने का ऐलान करने वाली को "खतरों के खिलाडी-४" में चुन लिया जाता है तो फिर "बिग-बॉस" के अगले सीजन के लिए "हम" क्या "बुरे" है और हाँ "सम्भावना"है की कल "एस.एम.एस."करके "आप" ही हमें जिताओ...मगर वो कहते है ना की "आज" के दौर में "लक्ष्मण" जैसा "देवर" हो तो "भाभी" भी बुरा मान जाती है ! यहाँ तो "मौत" से पहले "ताबूत" का "आर्डर" दे दिया जाता है ! संत की "परम्परा" नहीं "सम्पति"पर "नज़र" रहती है !बकौल आदरणीय सलमान खान " हम करें तो करेक्टर ढीला है ! सुना नहीं,रेलवे ने कहा है की "खिलाडी" को "धक्का" नहीं दिया गया उसने खुद ही "आत्महत्या" की कोशिश की थी ! "बडबोले योग-गुरु" के खिलाफ इस बार "संतों" ने "हल्ला" बोला है ! "जिंदगी" और "आई.पी.एल." में ज्यादा "फर्क" नहीं है !"ओरेंज कैप" हमेशा "सर" बदलती रहती है ! पुणे के "कलमाड़ी" पर "अरबो"के "घोटाले" का "आरोप" है और वही उनके पडोसी "अहमदनगर"के "अन्ना" भ्रष्टाचार के विरुद्ध "आवाज़" है....! "तपती" गर्मी में सडको पर "तारकोल" डालता "मजदूर" हो या फिर "गरीबी"से तंग आकर " खुदकशी" करता "किसान"..."भ्रस्टाचार" और "आवाज़" से बढ़कर उसके लिए इस "महंगाई" में "बच्चो" के लिए दो जून की "रोटी" और दो गज "कपडा" ही "शाही जिंदगी" है,उसे किसी से कोई "शिकवा" नहीं है ! ये हमारा "मुल्क" है भाई साब....कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए! कहाँ चिराग मयस्सर नहीं, शहर के लिए !! ना हो कमीज़ तो पावों से पेट ढँक लेंगे,ये लोग कितने मुनासिब है इस सफ़र के लिए !!!! "श्रमिक दिवस" पर मेहनतकश "मजदूरों" को "सलाम"...अब तो इनके "हिस्से" में यही "बचा" है....
बेहद सशक्त प्रस्तुति...धारदार लेखन...पैनी नज़र...अपनी बात इतने सटीक तरीके से पेश कर पाने की सलाहियत सबके पास नहीं होती...बधाई !
ReplyDeleteKiya khuba,dil ko gudgudaya aur hilaya aur kafi kucha ehasas karaya.
ReplyDeleteNo words just thanx sir...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिमा !भावो को व्यक्त करने का अंदाज़ अगर आपको सलाहियत लगा तो ये आपकी "पैनी नज़र"है...धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए....!! संजय,बस यही कोशिश है की हंसते हंसते ही कभी हम कुछ "सोचना"तो सीख ले....और दिग्विजय...तुम्हारे लिए इतना की पढ़ते रहो फुर्सतनामा शब्द भी आ जायेंगे....धन्यवाद आप सभी का !!!!!!!
ReplyDeleteमेरी पसंद को इज्ज़त बख्शने के लिए शुक्रिया.सामयिक विषयों पर त्वरित टिप्पड़ी के लिए फुर्सत्नामा के लिए सिर्फ एक शब्द "सबसे तेज".उत्तम प्रहार.सारे स्ट्रोक सीमा रेखा के पार.
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