Saturday, October 6, 2012

मेरे निशाँ..है कहाँ, मेरे निशाँ .....

अब ये "कमबख्त" "उम्र" का "तकाज़ा" है या "माहौल" का "खुलापन" पता नही,लेकिन एक "अंतराल" के "बाद" "मनवा" फिर से "फुर्सतनामा" की ओर "लपक" रहा है ! "आइटम" की "भाषा" में इस "मोड" को  कहते है "लाइफ" की "नॉटी" कहानी "हलकट जवानी"...एनी वे "हम" तो "अन्ना" में "उम्मीद" और "केजरीवाल" में "कमी" तलाशने वाली "पीढ़ी" के है, लिहाजा "वजह" "तलाश" ली है .....अपने "फेसबुकिया" "ठिकाने" की "आबादी" ने एक "अरब" का "आंकड़ा" छू लिया है ! अब "आप" कहोगे की ये कोई "वजह" हुयी...क्यों भाई, क्यों नहीं हुयी वजह...जब बिना "ब्याज" के "दामादजी" को "लोन" देना "जांच" का "विषय" हो सकता है! "दबंग" "अमेरिका" बाज़ार में "गली-गली" "काबुलीवाला" बनने को "तैयार" है फिर तो "कुछ" भी हो सकता है मगर "आप" तो "ठहरे" "बौद्धिक" लोग सो "केएलपीडी" को भी "किस्मत-लव-पैसा-दिल्ली" समझते हो और "हम" ठहरे 'खालिस" "खांटी" "यू.पी."के तो अपनी "पहलवानी" बुद्धि को "हमेशा" "तीसरा मोर्चा" ही "दीखता" रहता और "मन" हमेशा "विधायकी" और "तन" "छात्रसंघ" चुनाव लड़ने को "मचलता" रहता है ! "बस" यही "डिफरेंस" है "हमारे" बीच में, हां "मंजिल" "दोनों" की "एक" है..."ओए" तेरी की ये तो "आंदोलन" बनाम "राजनीतिक पार्टी" वाला "डायलाग" हो गया ! खैर पुरानी "कहावत" है, जब "वक्त" "खराब" चल रहा हो तो अपनी "बीबी" पर किया "मजाक" भी "भारी"  पड़ जाता है फिर "आप" "सफाई" देते हुए "राग बिलावल" में "सुर्ख" हुयी "हिना" की तरह "रब्बा-नी" मै तो "मर" गया रे "गाते" रहो मगर आपका "बिजली" "कनेक्शन"कोई नहीं "जोड़ने" वाला.....जाने दीजिए भाई साब, "इतने" दिनों के बाद "मुलाकात" हो रही है सो "बेवजह" "सेंटी" हो रहा हूँ,क्या करें "हम" तो "आम हिन्दुस्तानी" है,जो "सचिन" के "सन्यास" की "खबर" पर "दुखी" हो जाते है और "श्रीदेवी" की "इंग्लिश-विन्ग्लिश" पर "खुश" ! हमें "बिग बॉस" का नया "सीज़न" "लुभाता" है और "सातवें" "सिलेंडर" का "दाम" "डराता" है ! "हम" तो "रोज" "सुबह" "जीते" है और "हर" "शाम" "ढलते" है ! बहुत "छोटी-छोटी" "खुशियाँ" है और "हम" "उनमे" ही "जिंदगी" "तलाश" लेते है...."पितृपक्ष" चल रहा है,"कहते" है जो "चले" जाते है वो  "ऊपर" से "हमें" हमेशा "भगवानजी" के "साथ" देखा करते है मगर जाने क्यों "आज" के "दौर" में  "पितरों" को "तर्पण" करते करते "जब" भी "नज़रें" उठा कर बड़ी "हसरत" से "ऊपर" की ओर "देखता' हूँ तो "आँखे" ना "जाने" क्या "सोचकर" "भर" आती है..."अम्मा" की "रोटी" का "स्वाद","बाबूजी" की "याद" या "कुछ" और...."पता" नहीं.....कही "दूर" "गाना" "बज" रहा है.......मिलता नहीं इंसानों में,बिकता हूँ मै दुकानों में ! दुनिया बनायीं मैंने हाथों से,मिटटी से नहीं जज्बातों से......मेरे निशाँ ..है कहाँ, मेरे निशाँ .....       

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