Sunday, October 14, 2012

इस "सड़क" पर इस "कदर" "कीचड" बिछी है,"यहाँ" हर "किसी" का "पाँव" "घुटनों" तक "सना" है !!!!!

अच्छा भाई साब,कुछ लोगों कि "आदत" ही होती है "स्यापा" करने की, "दबंग" मंत्री की तरह बेवजह "पंडिताई" दिखाते ही रहते है ! सुना नहीं "महानायक" के "जन्मदिन" पर पूरी "दो" "दिन" तक "खबर" चलाई,वही "लोकनायक" पर एक "लाइन" तक नहीं, लो कर लो बात,एक ने "सम्पूर्ण क्रांति" का "बिगुल" भर ही तो "फूंका" था,अब ये "अलग" बात है की "लोग-बाग"  "आज" तक "उन्ही" के "नाम" की "पुंगी" फूंक रहे है एनी वे मगर "अगला" तो हर "घर" के "ड्राइंगरूम" में जाकर "करोड़ों" जीतने का "मौका" दे रहा है ! मगर नहीं "आरोप" "लगाना" है तो "लगाना" है ,कौन सा "अपने" को "सबूत" देना है,सिर्फ "इशारा" ही तो करना है "ऐसा हुआ है तो ऐसा भी हुआ होगा,सरकार जांच करा ले " बस रोज "चार" "कागज" लहराते हुए आ जाओ,बाकी "मीडिया" तो है ही 'कवरेज" करने को तैयार....अब "बेचारा" "अगला" अपनी "बेगुनाही" का "सबूत" ढूंढता फिरे ! वैसे भी ये "जनता" की "अदालत" है,यहाँ "लोकतंत्र" और "संविधान" थोड़े माना जाता है,वो तो सब "फेल" हो चुके है ! क्योंकि "कानून" तो कहता है कि जब तक 'आरोप" "साबित" ना हो जाये "आप" "निर्दोष" हो ,मगर  यहाँ  जब तक "खुद" को "बेगुनाह" न साबित कर दो "आप" दोषी" हो  ! और हाँ,तब-तक "उत्साही" "जनता" का "फैसला" भी "फेसबुक" पर "फब्तियों" और "ट्विटर" पर "टान्ट" कि "शक्ल" में आता ही रहता है !ये है "असली" "धृतराष्ट्र",जिन्हें पता नहीं कि "हजारे" से "सींची" गयी "राजनीति" में ये "खाद" कि तरह "इस्तेमाल" हो रहे है ! "फिक्स" "अम्पायर" जिन्हें "चैम्पियन ट्राफी" के नाम पर "एक-दूसरे" के खिलाफ "मैदान" पर "उतार" रहे है ! पुरानी कहावत है कि जब  "चेला" खुद "गुरु" हो जाये तो असली "गुरु" का "गायब" होना "लाज़मी" है ! जाने दीजिए भाई साब,"पितृपक्ष" में "कव्वो" को नहीं "कोसा" जाता है ! "आम आदमी" तो वो "टोपी" है जिसे "पहन" कर "आप" "किसी" कि भी "टोपी" "उछाल" सकते हो ! हमारा "मुल्क" "सच्चाइयों" का "देश" है ! यहाँ "मुखौटों" को "उतरने" में 'देर" नहीं लगती है ! "नवरात्र"आरम्भ हो रहे है ! "भूत रिटर्न्स " के दिन गए !  हमारी "अइया" (दादी) कहा करती थी जब "वक्त" पर "दिल" में "कुछ-कुछ नहीं होता है" तो कोई "बात" नहीं जब "जागो",तब "सवेरा" ....यही "बात" "आज" कि भी "अइया" कह रही है वो भी "आज" के "अंदाज़" में बस "ज़रूरत" है "समझने" कि......"ड्रीममम वेक्क्पम".....शेर याद आता है.....मत कहो 'आकाश" में "कुहरा" "घना" है,ये "किसी' कि "व्यक्तिगत" "आलोचना" है ! इस "सड़क" पर  इस "कदर" "कीचड" बिछी है,"यहाँ" हर  "किसी" का "पाँव" "घुटनों" तक "सना" है !!!!!  

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