Sunday, April 3, 2011

.....जियो खिलाडी वाह रे वाह !!!!!!

तोभाईसाब,फाईनलीहम"वर्ल्डचैम्पियन"बन  ही गए ! सच बताऊँ  तो "आधी रात" तक "जीत" का "जश्न" मनाने के बाद अब फुर्सत से बैठा
तो याद आया कि जीत का"जश्न"मनाने वालों में "वो" भी शामिल थे जो "ज़हीर"
के आखिरी पांच ओवर "पिटने" पर "गरिया"रहे थे!"वो" भी थे जिन्होंने "सचिन" और "सहवाग" के आउट होने के बाद ही "हार"का "एलान" कर दिया था ! "वो"  भी थे जो "श्रीशांत" के "ना खिलाने" पर और "वो"भी जो "खिलाने"पर सवाल खड़े कर रहे थे......कसम "मुरलीधरन"कि दिमाग ही घूम गया ! "कन्फयूजन" इतना  कि "मन" किया "दोबारा" "टास" करा लूँ ! बहरहाल वो तो  भला हो "रेफरल सिस्टम" का जो  दिमाग से "कंसल्ट"  किया तो "साइमन टफेल"कि तरह "निर्णय"बदलना पड़ा और "जीत" कि "वज़ह "समझ में आ गयी वर्ना टी.वी.स्क्रीन के "विशेषज्ञों"कि तरह कभी "टार्गेट" तो कभी "पिच"को तो कभी "रणनीति"को "कोसता" रहता और जीतने पर "जश्न" मनाने का सारा "क्रेडिट" खुद ले लेता!एनी वे,"आपको" लगता रहे कि जीत "राम-रावन" से लेकर"रजनीकांत" वाले "मैसेज" को "फारवर्ड"
 करने से मिली है लेकिन  आपसे एक "प्राईवेट" जानकारी "शेयर" करता हूँ किसी से "कहियेगा" नहीं,कसम "गिलानी" की,सच तो ये है कि जैसे ही "महेंद्र राजपक्षे"ने अपना "निमंत्रण" स्वीकार किया ,अपनी "जीत" तय हो गयी थी!क्योंकि ये वो "मुल्क" है जो "टोटके" भी मानता है और "भावनाओं"  में  बहता भी है मगर भाई साब  "जिंदगी"के "वर्ल्ड कप"में न तो "टोटके" चलते है और न ही "भावनाएं"! यहाँ  "महेला"की "पुरुषोचित पारी" भी "हार" को नहीं "टाल" पाती है और "गंभीर" का एक "लापरवाही" भरा शाट "शतक" नहीं बनने देता ! जीत का "जश्न"ज़रूरी है मगर  "उन्माद" खतरनाक !"खबरिया मीडिया" ने "मोहब्बत"बिखेरने वाले "खेल" को "जंग"में तब्दील कर दिया है!  माना "जीत" के लिए "किलर इंस्टिंक्ट"ज़रूरी है मगर "खेल भावना" को "किल" करके नहीं !यहाँ "हारने" वाला भी "दिल" जीत लेता है!हमें  "इडन गार्डेन"में रोते हुए "काम्बली"का चेहरा याद है!हमें "शारजाह"में पड़ा "छक्का" याद है!हमें "लार्ड्स" की "बालकनी" में"कप"उठाये  "कपिल" याद है और अब हमें "वानखेड़े"में लगे "छक्के" के बाद "कप"उठाये "धोनी & टीम"याद रहेगी......सच मानिये "जाते-जाते" ये "विश्व कप"हमें बहुत कुछ दे गया है!हमें याद रहेगा "आफरीदी" का बयान,जो "अपने" "मुल्क" में लौटने पर दिया है ..."हम हार गए है!मै इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ!मगर भारतीयों से इतनी नफरत क्यों?वो भी "हम" जैसे ही है....जियो "खिलाडी" "वाह रे वाह"!!!!!!!
भाई साब,अगर यही "विश्व कप" "मुकाबला"है तो इसे होते रहना चाहिए क्योकि यहाँ "जीत" "राम-रावन"की नहीं!"गोरों", "-....खोरो", और सीता माँ के ".......", की नहीं,यहाँ "जीत" "खेल"की होती है...कभी "फुर्सत"में  "दिल" से सोचियेगा !"जवाब" यही मिलेगा !!....भारतीय "जीत" की 'मंगलकामनाओं" के साथ अर्ज है "जागते रहिये ज़माने को जागते रहिये,मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलते रहिये!प्यार हो जायेगा आपको भी एक दिन, दिल मिले न मिले, नजरो से नज़रें मिलते रहिये!!!!!!!              

8 comments:

  1. bilkul sahi, ye world cup hamein jo kuchh de gaya, shaayad hum soch bhi nahi sakte, Afridi ke lafzon mein jo khiladi bhawna jhalakti hai, agar wahi bhawna kuchh baras pehle prakat hoti, unke desh se to aaj duniya pyar ke rangon se sarabor hoti. kuchh b hi ho, mai to kewal ek likhawat parh raha hoon jo hamare aakash kee chhati par sunahare aksharon mein likhi ja chuki hai aur wo hai hamari desh prem ki bhavna, hamari ekta aur dhark nirpekshta ke maap dandon ko mili nayee unchaiyan. aisa adbhut bhavnatmak judav pehle kabhi dekhne ko nahi mila. kasam ooper wale kee, maza aa gaya. aisa hriday parivartan bhagwan kare poori duniya mein ho jaaye. shayad kaliyug kee samapti aur satyug kearambh ke yahi sanket hain. ab to bus pyar hee pyar milega, pyar kee jeet yane sabki jeet. Badhia hai.

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  2. ameen !!!!!!!thanx bhai saab !!!!!!!!!!

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  3. Sir ye humare liye proudest moment hai...
    thanks sir and congratulations..

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  4. iss bahot badi jeet ke liye badahai.

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  5. भारतीय जीत कि ढेर सारी बधाइयाँ...ये सिर्फ जीत नहीं देश भर कि दुआओं और शुभकामनाओं के साथ साथ खिलाडियों कि मेहनत का प्रतिफल भी है...सो जय हो !!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  6. Kamal!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!ka.
    Aapke har sixer ke aage mera sir natmastak tha, hai, rahega.

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  7. सामयिक घटनाओं पर तेज नज़र और उससे भी तेज कटाक्ष आपको एक नयी पहचान देता है.हालाँकि इस शैली में कबीरदास,सहीराम,सूर्य कुमार पाण्डेय और अलोक पुराणिक की रचनाएं भी विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होती हैं ,परन्तु जिस तरह का उपमायुक्त कटाक्ष फुर्सतनामा में मिलता है वह एक बार तो सोचने पर मजबूर कर ही देता है.साथ ही दिमाग को एक नयी खुराक भी मिल जाती है.अगले अंक का इंतज़ार रहेगा.

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  8. धन्यवाद आशू...!!!! हौसला बढ़ाते रहो.....!!
    राघवेन्द्र जी ,क्या कहूँ? आपके आकलन पर टिप्पड़ी नहीं कर सकता ....लेकिन मुझे लगता है जो नाम आपने लिखे है वो सब महारथी है...हां ये ज़रूर है कि आप सब कि प्रतिक्रियायों से बहुत बल मिलता है...ये स्नेह बनाये रखियेगा....उम्मीद करता हूँ कि आपकी आकांक्षाओ को पूरा करता रहूँगा...

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