Wednesday, February 16, 2011

."मुहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मखसूस किये जाते है..............



वो क्या है भाई साब, कि हमने कभी "सच्ची" मुहब्बत नहीं की  है ना, इसलिए उसके  "तौर" "तरीको" से "वाकिफ" नहीं हूँ!सन ..... के "आस पास" ज़रा सा "इरादा" किया था कि उसके "पिता जी" ने "भांप" लिया और जात बिरादरी के ही एक "चिरंजीवी" के साथ उसे "आयुष्मती" बना के "विदा" कर दिया ,इसे  कहते है गाँव बसा नहीं कि कुत्ते रो दिए....हाँ ये ज़रूर  है कि हमने दूसरो को "छज्जे" से "महीन महीन" "पर्चियां" फेकते खूब देखा है !आपकी कसम भाई साब,मन में "धूपबत्ती" सी "सुलगने" लगती थी,सब कुछ "ओस" में "भीगा भीगा" लगने लगता था वगैरा वगैरा ....!वैसे बात "मुहब्बत" कि ,पुरानी कहावत है कि "बंदर" कितना भी "बूढ़ा' क्यों ना हो जाए,"गुलाटी" मारना नहीं भूलता!कसम "विलायती बाबा" की,इधर "अपना" भी "मन" कर रहा है कि दो चार अदद "लाल गुलाब" खरीद कर "इजहारे मुहब्बत" कर ही डालूं!अगला "मान" गया तो ठीक, वर्ना "दस रुपये" के "गुलाब" में "टेस्ट" तो हो जायेगा! अब "आप" ही बताइए" महंगाई "के इस "ज़माने' में इससे "सस्ता" और क्या होगा?सब "मौसम" की "बलिहारी" है भाई साब,देखो ना चारो तरफ हर "लब" पर "लव" के ही "तराने" है! "पिया" "इश्क" का "मंजन" घिस रहे है ! "बालिका वधु" को धकेल कर "ससुराल गेंदा फूल" "टॉप" पर है !यूँ ही नहीं "हुस्न" के "मुल्क" छोड़ के भागने पर "मुबारक" दी जा रही है! "वाग्देवी" कि "पूजा" पर "बाबा velentine " का "मैसेज" हावी है!ये "उम्र" का "एक्सन रिप्ले" है ,"गाने" से लेकर "टीवी स्क्रीन" तक हर जगह "जोर का झटका' लग रहा है!
वैसे एक बात बताइए भाई साब,हमारे "ज़माने" में तो "किचन" में जाकर "हम"अपनी ही "बीबी" का चेहरा "निहार" के "निहाल" हो जाते थे ,कभी "सिंगल" "इंगेज" "ब्रेकअप" का "मौका" ही नहीं मिला !यही नहीं "हमने" तो कभी "लाल गुलाब" देकर "मुहब्बत" का "इज़हार" भी नहीं किया ...तो क्या ....तो क्या "वो" हमसे "मुहब्बत" नहीं करती है? सच कहें "लव आजकल" भी "सलाम नमस्ते" हो गया है, जो "अनजाना अनजानी" में बगैर "बैंड बाजा बारात" हो सकता है!हम तो "प्रेम" की "पराकाष्ठा" "राधा-कृष्ण" को मानते है और वो इसे भी "लिव इन रिलेशन" कहते है....!!!!
माफ़ कीजियेगा भाई साब पहले ही कह चुका हूँ "मुहब्बत" के "तौर तरीको" से "वाकिफ" नहीं हूँ मगर ये जानता हूँ की "मुहब्बत" "मुहब्बत" होती है,"सच्ची" या "झूठी' नहीं!"मुहब्बत" को कभी "इजहार" के लिए "लाल गुलाब" की "ज़रूरत" नहीं पड़ती!सच तो ये है भाई साब, "हाथो" में "गुलाब" नहीं ,"दिलों" में "विश्वाश" "खिलना" चाहिए!"चाकलेट" "टेडी" "प्रामिस" "हग" से बढ़ कर "अपनापन" होना चाहिए ...........जाने भी दीजिये, बेवजह "इमोशनल" हो रहा हूँ,जानता हूँ "नर्सरी राईम"  के आगे "अन्ताक्क्षारी" बेकार है पर हाँ,चलते चलते "इजहारे मुहब्बत" के लिए "एकदिन" "मुक़र्रर" करने वालों की "नज़र"एक शेर है ......"मुहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मखसूस किये जाते है,ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गया नहीं जाता!!"
मुहब्बत जिंदाबाद!!! आमीन...!!!!!

2 comments:

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