Sunday, March 16, 2014

रंगों के खत बांटता आया फागुन द्वार...


कसम बौराए फागुन कि भाई साब क्या नज़ारा है,जिसे देखो वही लाल-पीलाहो रहा है ! चारो तरफ सियारो कि तरह  रंगे-पुते प्रत्याशी तैयार है ! वादों’ कि पिचकारी में भर-भर कर झूठी उम्मीदों कि बौछार जारी है ! आश्वासनों का गुलाल उड़ाया जा रहा है ! लोकतंत्र का श्रृंगार” “होलिका बुआ कि तरह किया जा चुका है ! काशी से लेकर पटना साहिबतक प्रहलादो ने सुरक्षित गोद तलाश ली है ! जिन्हें टिकट मिल गया है उन देवरों को पार्टी नई भाभी कि तरह लग रही है,जिन्हें नहीं मिला है वो खिसियाये’ बाबा कि तर्ज पर बुढवा मंगल कि तर्ज़ पर दंगल में यूँ ही कूद पड़े है ! होली कि ठिठोली में जंतर-मंतर पर दीदी दादा को ‘झूठा कह रही है ! शिवसेना विकास पुरुष से ‘विश्वास पैदा करने को कह रही है ! विश्वास अपने ही खुमारमें कविताये लिखना छोड कर एफ आई आर लिखवाने में व्यस्त है ! वैसे भी होली में नैतिकताका पतन हमारी परम्परा है ! बरसाने में अगर राधा-रानी कान्हा कोलाठीमार सकती है तो कलक्टर निर्वाचन-अधिकारी का कागज फाड़कर नहीं फेंक सकती है ! आप भी कमाल करते हो भाई साब, ठिठोली का कोई ओर-छोर ही नहीं है ! इस बार आप मीडिया को ही जेलमें डाल दोगे ! पुरानी कहावत है मफलर लपेटने से असली चेहरा नहीं छुपता”, वैसे भी  होली” “उनचास दिनों कि नहीं आठ दिनों कि होती है सो ज्यादा दिन ये ठिठोली नहीं चलेगी ! ये माना कि रंग बदलने में आप माहिर हो मगर ये जनता है जो रंग” “चढाना ही नहीं उतारना भी  बखूबी जानती है ! महंगाई कि मार से भले पीली पड़ चुकी है मगर ज़ज्बातो को ठेस लगने पर लाल भी हो जाती है ! खैर साब, जाने दीजिए बेवजह इमोशनल होने से कोई फायदा नहीं है ! केमिकल के खौफ से कलर से परहेज करने वाली पीढ़ीपहले ही इसे केमिकल लोचा करार दे चुकी है ! मगर सच कहूँ भाई साब तो वर्चुअल होली के इस दौर में भी अम्मा के अलसुबह उबाले गए टेसुओं के रंगों कि गर्माहट अभी तक ताज़ी है ! अपनेपन और मुहब्बत से खेले गए रंग तन को ही नहीं आत्मा तक को रंग देते है ! डीजेपर बजते बलम पिचकारीपर अभी भी बिरज में होली खेलत नंदलाल भारी है ! एक चुटकी सिन्दूर कि कीमत रमेश बाबू भले ना जाने मगर एक चुटकी अबीर कि कीमतहमारे बाबूजी अभी भी जानते है जो आज भी हमारी हंसी के लिए घर में गुझिया,चिप्स,पापड़ और नए” “कपड़ोका इंतजाम हर साल कर ही देते है.......होली बीत जाती है,पीढियां बदल जाती है, बाबूजी भी बदल जाते है मगर भावनाएं वही रहती है....गीली हो रही आँखों कि कोर कह रही है, ये जिंदगी भी होली है, जहां आग भी है और पानी भी ! हर पल जलती हुई होलिका भी है और जश्न से छलकते रंग भी....कुआ जलना है और कैसे जश्न मनाना है यही बताती है होली.......छलकते रंगों का येपर्व मुबारक हो......एक दोहा उछाल रहा हूँ सम्भालियेगा.......रंगों के खत बांटता आया फागुन द्वार, प्रेम रंग का खत दिया उसने अबकी बार !!!!!!

No comments:

Post a Comment