Saturday, March 1, 2014

इक इश्क शाहजहाँ के पैरलल






                      


वो क्या है भाई साब कि, उम्र के इस उन्तीसवे दशहरे तक खाकसार ने दो-चार बार फ्रिज से मिठाई चुराई  है, झूठ भी बोला है और दीपावली पर  मौका मिलने पर ताश-वाश भी खेली है मगर आपकी कसम इश्ककभी नहीं किया ! अब जब किया नहीं तो उसके गाढे-पतले से भी नहीं वाकिफ ! बकौल शायर लुत्फे मय तुझसे क्या कहूँ जाहिद,हाय कमबख्त तूने चखी ही नहीं” ! सन बयासी में इक बार ज़रा सा इरादा किया था कि उसके पिताजी ने ताड़ लिया और जात-बिरादरी के ही इक चिरंजीव के साथ सात फेरे घुमवा दिए ! इसे कहते है गांव बसा नहीं, कुत्ते पहले रो दिए ! खैर साब खुद तो किस्मत में था नहीं लेकिन दूसरों को इश्क करते,छज्जों से महीन-महीन पर्चियां फेंकते और संक्षिप्त मुलाकातें करते ज़रूर देखा है –मनवा में लोबान सा सुलगने लगता था,दिल कि खिड़कियों पर ओस कि बूंदें सी ठहर जाती थी वगैरह-वगैरह फीलिंग होती थी ! वैसे हमारे जान-पहचान के कुछ मनहूसो ने अपनी ही बीबी से इश्क भी किया है, उनका कहना है कि अगर बीबी गुलो-गुलज़ार टाइप कि हो तो इश्क करने में हर्ज ही क्या है ! खैर साहबान,हालांकि इतिहास’ के मामले में हमारा ज्ञान बेहद संक्षिप्त है फिर भी जहा तक एलाउ करता है,तो बीबी से इश्कया तो शाहजहाँ ने किया था या फिर गया जिले के अत्री प्रखंड के गहलौर में रहने वाले दशरथ मांझी ने ! इक ने इश्क के बाई-प्रोडक्टके रूप में ताजमहल छोड़ा तो दूसरे ने सोलह फुट चौड़ी सड़क ! शाहजहाँके इश्क पर लोग सदियों से फ़िदा होते रहे मगर दशरथ मांझी को किसी ने घास तक नहीं डाली- आज इतने बरसो बाद हम डाल रहे है !
अब आप यहाँ ज़रूर पूछोगे कि ये दशरथ मांझी चीज़ क्या है और इनका इश्ककिस स्टैंडर्ड का है ? तो भाई साब आपने फरहाद का नाम तो सुना ही होगा ! ये शीरीं के अब्बा जान के हड़काने पर पहाड खोद कर जुएशीर निकाल लाए थे ( जुएशीर” “दूध कि नहर को कहते है) ! एनी वे हमारे दशरथ मांझीको आप बिहार का फरहाद भी कह सकते है ! वंस अपान ए टाइमदशरथ मांझी के पास भी इक अदद जवान बीबी थी फगुनी” ! काम चलाऊ खूबसूरतमगर हर शौहर के तरह दशरथ उस पर यूँ मरते थे जैसे कुर्सी के लिए नेता ! हुआ यूँ कि इक रोज दशरथ मांझी हमेशा कि तरह पहाड़ी के पास खेतों में काम करने गए थे ! दोपहर को फगुनीउनके लिए लंचलेकर आई ! पहाड़ों से निकलने का बड-खाबड़” “संकरा रास्ता-सर पर भरी पानी कि मटकी-बगल में लंचकि पोटली और ऊपर से जवानी का बोझ- हाय हाय हाय निगोड़ा पैर फिसला –मटकीफूटी और पड़ गयी तने-नाज़ुक पर चंद खरोंचे ! बस जी पूछो मत दशरथ मांझी के गुस्से का पारा थर्मामीटर तोड़ कर बाहर आ गया ! काश, ये बड-खाबड़  रास्ता ना होता तो यूँ मेरी जाने-गुल ठोकर खाती ! बस साहब फिर क्या था – उठाई हथौड़ी, साधीछीनी और दे-दनादन पथरीली सड़क काटनी  शुरू कर दी ! पत्नी ने बहुतेरा समझाया लेकिन खरोंचे फगुनीके तन पर नहीं, दशरथ के कोमल जज्बातों को लगी थी-फिर उस साढ़े तीन सौ फिट और बारह फिट ऊँचे पहाड की क्या औकात” ! या खुदा पूरे पच्चीस साल तक ये जुनूनी  अभियानचला और फिर निकल आया सोलह फिट चौड़ा रास्ता’ ! लेकिन अब तक मटकी फोड़ने वाली जवानी डाउन होकर इस दुनिया से खर्च हो चुकी थी ! बहरहाल दशरथ मांझी का ये अभियान इस हकीकत पर रौशनी डालता है की पक्का मजबूत और टिकाऊ इश्क” “बीबी के साथ भी हो सकता है ! भाई साब आज भी दुनिया में ऐसे वफादार अब भी मौजूद है जिन्होंने सारी दुनिया से झूठ’ अगर बोला भी है तो अपनी बीबी’ की खुशी के लिए ! जिन्होंने शादीशुदा जिंदगी के पत्थरों को ढोया नहीं तराशा है ! बुढ़ापे तक जिनके चेहरे की इक-इक झुर्री में इश्क की लौ दमकती रहती है ! वो कहते है ना की लोग नोट लेते वक्त उस पर छपी तारीख नहीं देखतेउसी तरह से काफी हजरात उम्र कर चौथे पहर में भी बीबी के चेहरे पर पहली मुलाकात की खुशनुमा परछाईयाँ ढूंढ लेते है ! फगुनीरास्ता नहीं देख पाई दशरथ मांझी को इसकी पीड़ा तो है लेकिन फगुनी की महकती यादें”, “फूटी मटकी”, “लंच की पोटली -सब कुछ जिंदा है- दशरथ मांझी की यादों में- ख्यालों में ! ये पाकीजगी है इस रिश्ते की- उम्र भर का साथ यूँ खत्म नहीं होता ! आईने का पारा उतर जाता है मगर अक्स धुंधले नहीं पड़ते ! दिलों के इस रिश्ते को बरकरार रखने वालो को आफरीन” ! “शेर याद आता है –गुल से लिपटी हुई तितली को हटा को दिखाओ , आँधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा !

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