Monday, June 13, 2011

ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का,मस्तानो का..

सच कहूँ भाई साब, आज कल अपना "मनवा" भी रह रह कर "सन्यास" की ओर "लपक"  रहा है !बहुत हुआ "डियो" और "टेलकम पाउडर" अभी "भभूत" लपेटने का "टैम" है !जी करता है "जींस-टी शर्ट" त्याग कर वन पीस "भगवा" लपेट कर "हिमालय" की "चोटियों" की तरफ निकल लूँ !"संन्यास" का "संन्यास" हो जायेगा और इस मुई "गर्मी" से "निजात" मिलेगी सो अलग ! वैसे भी मुझे कौन सा उम्र भर का संन्यास लेना है,जब मन करेगा "साध्वी" की तर्ज़ पर "पार्टी अध्यक्ष"  के हाथो "गुलदस्ता" थाम कर आ जाऊंगा फिर से वापस "पार्टी" में! कसम आफरीदी की भाई साब, असली "खेल" तो "सन्यास" के बाद ही शुरू होता है ! निजी विमान से सत्याग्रह करने पहुँचो ! फाईव स्टार में समझौता करो! बात खुल जाये तो मुकर जाओ,यही नहीं मौका पड़े तो "मंच" से "कूद" कर "भाग" जाओ....इतना "एक्सईटमेंट" तो "२०-ट्वेंटी" में भी नहीं है !वैसे एक बात कहूँ भाई साब,कथित "आज़ादी की दूसरी लड़ाई" के "स्वयंभू क्रन्तिकारी" की समझ में आ गया होगा की "शिविर" लगा कर "देशभक्ति" के गानों पर एक्टिंग करना एक बात है और "पुलिस जी" के आगे टिके रहना दूसरी बात! वो तो कहिये मुल्क की किस्मत अच्छी थी जो आज़ादी की "पहली लड़ाई" वाले "क्रन्तिकारी" "सलवार-कमीज़" पहन कर "भागने" के बजाय "फांसी" के "फंदे" को चूमना पसंद करते थे वर्ना आज.....जाने दीजिये भाई साब,"जिंदगी" में सबकुछ हमेशा "अनुलोम" ही नहीं होता है "विलोम" भी होता है मगर आप भी "दूसरों" के "कपाल" की "भांति" सोचो तब ना ! ये आपका ही "उलट-आसन" था जिसने "लौकी" छोड़कर "मुसम्मी" का "जूस" पिलवा दिया है ! ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का,मस्तानो का.. जहाँ "सानिया मिर्ज़ा" के "खेल" से ज्यादा, उसकी "ड्रेस" की चर्चा होती  है ! जहाँ "अरबो" की सम्पति रखनेवाला "सन्यासी" है ! जहाँ "बापू" के "स्वराज" से ज्यादा, "राजघाट" पर "स्वराज" के ठुमके की चर्चा होती  है ! जहाँ "सन्यासी" "खुद" की "हथियार बंद" सेना "गठन" का "ऐलान" करता है,वहां  आप "अनशन" का ड्रामा करते रहो उधर "राणा" बरी हो जाता है ! "गंगा दशहरा" के ठीक पहले "स्कूलों" के "पाठ्यक्रम" में "गंगा" के "आगमन" की "कथा" "अन्धविश्वाश" कह कर बदल दी जाती है ! ये इस मुल्क की "किस्मत" है भाई साब,जहाँ "चन्द सालों" में ही "अरबो" की "सम्पति" सिर्फ "दान" से ही बन जाती है ,जबकि इस "मुल्क" में "बाबा" ही नहीं, "आम हिन्दुस्तानी" भी  रहता है जो अपने पसीने में "खून" की खुशबु "महसूस" करके "चार पैसे" कमाता है और उसके लिए इस "महंगाई" में ये सब-कुछ एक "तमाशे" से ज्यादा कुछ नहीं है !ऐसा नहीं है की वो कुछ "समझता" नहीं है,बस "चुप" है.....ए फलक न तबाह कर,न समझ के यूँ ही खामोश हूँ ! फकत इंतज़ार है वक़्त का, तेरी चाल मेरी नज़र में है !!!!!!!! 

3 comments:

  1. बहुत खूब !! क्या कहने...वाह-वाह-वाह-वाह.....कुछ और लिखने के लिये छोडा ही नही आपने दीपक जी. अब एक ज़रा नज़र-ए-इनायत आचार्य बी०के० योगी :-) पर भी हो जाए...मतलब उन पर भी कुछ लिख डालें तो बात पूरी हो... बिचारेऽऽऽऽऽ कित्ता रो रहे थे.

    ReplyDelete
  2. बी०के० योगी,बोले तो अपने बाल(क)किशन योगी जी महाराज... बेचारे इत्ता रोये तो एक पोस्ट तो बनती है न उनकी भी :-)

    ReplyDelete
  3. The best thing about ur blog is the deadly combination of words...... its really top class.....

    ReplyDelete