Monday, November 7, 2011

.."हँसब ठठाई,फुलाउब गाला" ....

वो क्या है भाई साब, कि अपने "मन" में कभी "फेमस" होने का "ख्याल" ही नहीं आया वर्ना "आप" तो जानते ही है कि इस "मुल्क"  में  जिसके भी "दिमाग" कि "कोठरी" में "जीरो पावर" का भी "बल्ब" जल रहा है उसे "फेमस" होते ज़रा भी "देर" नहीं लगती है ! यू नो "इधर" एक "बयान" जारी करो फिर "तड" से उससे "पलट" जाओ "बोले" तो "खंडन" कर दो बाकी का "काम" "मीडिया" संभाल लेगी....अब  आप बेवजह "काटजू" बनने कि "कोशिश" मत करिए ! देखा नहीं "एक्सपर्ट एडवाइस" में अगले ने "एक करोड़" "मीडिया मैन" की ही "एडवाइस" से जीते थे ! ये और "बात" है कि "इटली आया नहीं-फ़्रांस है नहीं" कहते कहते "पाँच करोड़" भी झटक लिए थे ! भाई साब,ये "स्पाट फिक्सिंग" नहीं "किस्मत" है ! जहाँ "लड़ाई" में "भ्रस्टाचार" पीछे रह जाता है और "कांग्रेस" आगे हो जाती है ! जिसे "देखो" वही कह रहा है "दाग अच्छे  है " ! "गोस्वामी जी" ने कहा भी है "हँसब ठठाई,फुलाउब गाला" बोले तो "धरब मौनव्रत,लिखब ब्लागा"...! अच्छा छोडिये भाई साब,बेवजह "petrol" के "दाम" बढ़ने पर "तिलमिलाने" से "कुछ" नहीं होगा ! "सौ करोड़" भारतीयों को  "अनदेखा" करके "डेढ़ सौ करोड़" कि भी "फिल्म" बनाओगे तो "फ्लॉप" होगी ही,देर से ही "सही" मगर ये "पब्लिक" है "सब" जानती है ! वैसे "आपने" क्या सोचा था "ग्यारह दिन" "आत्ममंथन" इस पर होगा कि "हिसार" में "हारी"  तो "कांग्रेस",मगर "जीता" कौन ?  आप भी भाई साब ना, "हद" करते है,अभी "यू.पी." बाकी है, जहाँ "चौथे" से "तीसरे" स्थान  पर आने  की  "कोशिश" में जुटी "कांग्रेस" को हराने का "मुकुट" पहनना अभी "बाकी" है और हाँ, "डोंट पॉइंट आउट" जो "जीते" है "वो"  "कैसे" है... पहले  भी "बता" चुका हूँ  कि "दाग अच्छे है"! सुना नहीं "मौनव्रत" के बाद भी "राजघाट" पर "सुर" धमकी वाले  ही थे..आपकी कसम कभी-कभी तो "कन्फूज" हो जाता हूँ कि "लड़ाई" भ्रष्टाचार" के "खिलाफ" है  या "कांग्रेस"  के......एनी वे  "संसद" का "शीतकालीन सत्र " भले न आया हो मगर "आम हिन्दुस्तानी" कि "जिंदगी" में तो "आ" चुका है ! कम्बल,शाल,स्वेटर,मफलर के साथ "मूंगफली" "टूंगते" हुए "गुनगुनी" धुप में हमेशा "भूपेंद्र साहब" कि आवाज़ में "गुलज़ार" के बोल सुनते थे .."जाड़ों" कि "नर्म धूप" में...दिल "ढूंढता" है फिर वही.....मगर ना जाने क्यों इस बार "कहीं कुछ" "कोटला" के "स्टेडियम" जैसा "खाली-खाली" लग रहा है....वो स्वछ,शांत,निर्मल "उत्तर-पूर्व" कि "आवाज़" जो हमारी "पहचान" थी..आज भी "धडकनों" कि "ताल" पर "गूंज" रही है....और "उथल-पुथल" से भरे "माहौल" में कुछ "पलों" का ही सही मगर "सुकून" दे जाती है.....दिल हूम-हूम करे,घबराये.....गुनगुनाते रहिये.....           

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