Tuesday, September 13, 2011

..........हिंदी,हिन्दू,हिन्दुस्तान !!!!!

प्रातः काल भगवान भुवन-भास्कर की रश्मियों के आगमन के साथ ही,गत वर्ष के संकल्प का द्रढ़ता पूर्वक पालन करने की नियत से हमने अपनी "भार्या" को आदेशित किया "हे अर्धांगनी,अतिशीघ्र पर्वतीय स्थलों  से प्राप्त होने वाली हरित पत्तियों से निर्मित ,दुग्ध शर्करा मिश्रित उष्ण पेय पदार्थ चीनी-मिटटी के बर्तन में प्रेषित करो,ताकि दिनचर्या आरम्भ हो,उधर से फ़ौरन जला-कटा जवाब आया "होश में आओ,इतनी लम्बी लम्बी मत छोड़ो,वर्ना "एडिट" हो जाओगे ! आपकी कसम भाई साब,बदन में जितना भी "सीसी" खून था सब उबल कर "चिकन सूप" बन गया ! कविवर प्रदीप ने यूँ ही नहीं लिखा है कि "देख तेरे  संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्,कितना बदल गया इंसान....! अभी होते तो ज़रूर लिखते "कहाँ गए भारतेंदु हरिश्चंद्र,कहाँ रहा हिंदी,हिन्दू,हिन्दुस्तान....! हमने समझाने की कोशिश की "अरे भागवान,! एक दिन तो "हिंदी" बोल ! तुझे क्या पता, 14 सितम्बर को "प्रतिवर्ष" हिंदी की "दुर्दशा" पर कितनी "चिंता" की जाती है ! "वातानुकूलित सभागारों" से लेकर  "नुक्कड़" तक भाषण,लेख,प्रतियोगिता,सेमीनार वगैरह वगैरह....! पत्नी मुस्कुराई "चींटी" होकर "चूहे" जैसा "बिल" बनाने चले हो ! चार "लाइने" फुर्सतनामा की लिखकर उड़ने लगे हो ! भूल जाओ... ! मै समझ गया भाई साब, "साठ" बरस की "बुढ़िया" पर "बनारसी साड़ी" नहीं फबती है, सो बात बदलने की "गरज" से हमने बाहर झाँका...वह क्या शानदार "जुलूस" है...भक्तों का रेला,बैंड-बाजा,रंग-अबीर-गुलाल...हमने "श्रद्धा" से "सर" झुकाया और जोर  से  नारा लगाया "गणपति बप्पा मोरिया"...उधर से जवाब आया .."अपना नेता मस्त है...! आपकी कसम झूठ बोलूं तो मेरा मामला भी "सुप्रीम कोर्ट से" सीधे "लोअर कोर्ट" भेज दिया जाये !  हम तो वहीँ खड़े खड़े "अवाक" रह गए..समझ गए ये तो"छात्र-संघ" की  "जीत" की "ख़ुशी" में निकला "जुलूस" है.. और  "गणपति बप्पा"... वो  तो "विसर्जित" होते होते मेरे "सवालिया" "नज़रों" को "भांप" कर "मुस्कुराये" और चुपके से बोले " ये मेरा "विसर्जन" है, "इलेक्शन" नहीं ..मै अगले बरस फिर आऊंगा "हिंदी दिवस"की तरह, तू  बिलकुल परेशान ना हो ,क्योंकि हिंदी तो वो "विशाल" ह्रदय वाली पवित्र "गंगा" है,जिसमे "दूसरी भाषाओँ" की तमाम "छोटी-बड़ी" नदियाँ,झरने,नहरें...आ आ कर मिलती है और ये "सबको" अपने में "समाहित" करके "महान" बनी रहती है ! यही इसका "बड़प्पन" है ! एक बात और "संगम" के जल से "सरस्वती" "यमुना" के "जल" को "अलग" करने  की "कोशिश" में "गंगा" के "विस्तार" की "संकीर्ण" मत कर! इसकी "शक्ति" "सामर्थ" और "अपनेपन" को "पहचान" ,क्योंकि यही है "सच्चे" अर्थों में "हिंदी" का सम्मान ! हमारी "आँखे" "खुल" गयी ! हम सोचने लगे "क्या ये स्वप्न है"???????   

2 comments:

  1. यदि आज्ञा हो तो एक छोटा सा संशोधन करना चाहूंगा."प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी की "दुर्दशा" पर वातानुकूलित सभागारों बैठकर अंग्रेजी जलपान (या पान?)के साथ अंग्रेजी भाषा में कितनी "चिंता" की जाती है ! ".उत्तम कृति है.बधाई.

    ReplyDelete
  2. yessss....very true..as we cant replacew our mother d same way we cant replace our mother tongue.....

    ReplyDelete