Saturday, August 28, 2010

हमारा मौन.....


हम अक्सर बेहद करीब होते है  
जब सुन लेते ही एक दूसरे की धड़कने 
महसूस कर लेते है भावनाए
अच्छा लगता है रहना एक साथ
लेकिन तभी
सच को स्वीकारने/ नकारने की प्रक्रिया में 
तलाशने लगते है हम शब्द 
शब्द,जो वाक्यों में परिवर्तित होकर
 और भी कर देते है हमें दूर, 
इसलिए सोचता हु,इस  बार ऐसी जगह मिले हम 
जहा हम हो, 
तुम हो,
और हो ,
हमारा मौन !!!

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