अब "आपसे" क्या "छुपाना" भाई साब, हमने हर "शिवरात्रि" पर "भाँग" भी पी है और "होली" पर चुराकर "गुझिया" भी खायी है मगर "बज़ट" कभी नहीं बनाया और जब बनाया नहीं तो उसके "गाढे-पतले" से भी नहीं "वकिफ़ ! ये काम "घर" में आपकी "भाभी" और "देश" में "वित्तमंत्री" के जिम्मे है ! अगला उतने ही "ठसके" से "चमड़े" के "ब्रीफकेस" के साथ "फोटो" "खिंचवाता" है, जितनी "धमक" के साथ "पत्नी" "तनख्वाह" निकालने के बाद "पर्स" वापस करती है !हम तो बस उस "अधूरी शपथ" की तरह है जिसमे "मुख्यमंत्री" से "मंत्री" बनने की "टीस" साफ़ नज़र आती है ! "मनवा" में एक "हूक" सी उठती है, काश "हम" भी थोडा सा "मुलायम" होते तो आज "सरकार" हमारी होती ! मगर वो कहते है ना की "वक़्त" बुरा हो तो "महाशतक" बनाने के बाद भी "टीम" "बंगलादेश" से "हार" जाती है ! बहरहाल आप "मायूस" न हो, जाते हुए "फागुन" की "खुमारी" अभी बाकी है ! "होलिका बुआ" के "फ्यूनरल" के बाद "माहौल" में "नीले" की जगह "हरा" रंग ही बचा है ! वैसे भी "पल्स-पोलिओ" की "बूँद" पीकर "बड़ी" हुई "पीढ़ी" को "वोट" के समय "भ्रष्टाचार" नहीं, "फ्री" में "मिलने" वाला "लैपटॉप" और "टैबलेट" याद रहता है ! "हाईस्कूल-इंटर" की "परीक्षा" के दिनों में "एशिया कप" की "भिडंत" देखने वालो के "गालों" पर "बेरोज़गारी भत्ता" मिलने की "लाली" छाई हुयी है ! "बाबा रामदेव" से लेकर "अन्ना" तक सभी अपनी अपनी "पीठ" ठोंक रहे है ! "श्री-श्री" की "धुन" पर "पकिस्तान" से लेकर "पूर्वांचल" तक "नाच" रहा है ! पुरानी कहावत है, "बेरहमी" से "बज़ट" पेश करोगे तो "ममता" नहीं मिलेगी ! वैसे भी इस "मुल्क" में "बज़ट" बनाने की "ज़रुरत" उन्हें है "जिनके" पास "कुछ" हो ! "आम आदमी" के लिए तो "राहत" सिर्फ एक "सपना" है ! "दो जून" की "रोटी के लिए सारा "दिन" "पिसना" है ! सुना है "बज़ट" बनाते समय "शेरो-शायरी" सुनाने की "परम्परा" है.....भाई साब, कभी अगर "आप" को "मौका" मिले तो "चमड़े" के उस "बैग" में "आम आदमी" का ये "शेर" रख दीजियेगा, जिसमे "कहते" है की "मुल्क" का "आम बज़ट" रखा जाता है ! "शेर" अर्ज़ है......."घर के ठंढे चूल्हे पर अगर,ख़ाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूं,धूप फागुन की नशीली है !! बगावत के कँवल खिलते है,दिल की सूखी दरिया में,मै जब भी देखता हूँ, आँख बच्चो की पनीली है !!!! it is well said ki"khalli dimag shaitan ka ghar"but sometime yahi shitani kuch aaise khurafato ko janm de deti hai jinka koi jawab nahi hota...fursat k unhi lamho me kuch khurafato ka pratiphal hai "fursatnama"...
Monday, March 19, 2012
घर के ठंढे चूल्हे पर अगर,ख़ाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूं,धूप फागुन की नशीली है !!
अब "आपसे" क्या "छुपाना" भाई साब, हमने हर "शिवरात्रि" पर "भाँग" भी पी है और "होली" पर चुराकर "गुझिया" भी खायी है मगर "बज़ट" कभी नहीं बनाया और जब बनाया नहीं तो उसके "गाढे-पतले" से भी नहीं "वकिफ़ ! ये काम "घर" में आपकी "भाभी" और "देश" में "वित्तमंत्री" के जिम्मे है ! अगला उतने ही "ठसके" से "चमड़े" के "ब्रीफकेस" के साथ "फोटो" "खिंचवाता" है, जितनी "धमक" के साथ "पत्नी" "तनख्वाह" निकालने के बाद "पर्स" वापस करती है !हम तो बस उस "अधूरी शपथ" की तरह है जिसमे "मुख्यमंत्री" से "मंत्री" बनने की "टीस" साफ़ नज़र आती है ! "मनवा" में एक "हूक" सी उठती है, काश "हम" भी थोडा सा "मुलायम" होते तो आज "सरकार" हमारी होती ! मगर वो कहते है ना की "वक़्त" बुरा हो तो "महाशतक" बनाने के बाद भी "टीम" "बंगलादेश" से "हार" जाती है ! बहरहाल आप "मायूस" न हो, जाते हुए "फागुन" की "खुमारी" अभी बाकी है ! "होलिका बुआ" के "फ्यूनरल" के बाद "माहौल" में "नीले" की जगह "हरा" रंग ही बचा है ! वैसे भी "पल्स-पोलिओ" की "बूँद" पीकर "बड़ी" हुई "पीढ़ी" को "वोट" के समय "भ्रष्टाचार" नहीं, "फ्री" में "मिलने" वाला "लैपटॉप" और "टैबलेट" याद रहता है ! "हाईस्कूल-इंटर" की "परीक्षा" के दिनों में "एशिया कप" की "भिडंत" देखने वालो के "गालों" पर "बेरोज़गारी भत्ता" मिलने की "लाली" छाई हुयी है ! "बाबा रामदेव" से लेकर "अन्ना" तक सभी अपनी अपनी "पीठ" ठोंक रहे है ! "श्री-श्री" की "धुन" पर "पकिस्तान" से लेकर "पूर्वांचल" तक "नाच" रहा है ! पुरानी कहावत है, "बेरहमी" से "बज़ट" पेश करोगे तो "ममता" नहीं मिलेगी ! वैसे भी इस "मुल्क" में "बज़ट" बनाने की "ज़रुरत" उन्हें है "जिनके" पास "कुछ" हो ! "आम आदमी" के लिए तो "राहत" सिर्फ एक "सपना" है ! "दो जून" की "रोटी के लिए सारा "दिन" "पिसना" है ! सुना है "बज़ट" बनाते समय "शेरो-शायरी" सुनाने की "परम्परा" है.....भाई साब, कभी अगर "आप" को "मौका" मिले तो "चमड़े" के उस "बैग" में "आम आदमी" का ये "शेर" रख दीजियेगा, जिसमे "कहते" है की "मुल्क" का "आम बज़ट" रखा जाता है ! "शेर" अर्ज़ है......."घर के ठंढे चूल्हे पर अगर,ख़ाली पतीली है, बताओ कैसे लिख दूं,धूप फागुन की नशीली है !! बगावत के कँवल खिलते है,दिल की सूखी दरिया में,मै जब भी देखता हूँ, आँख बच्चो की पनीली है !!!!
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