it is well said ki"khalli dimag shaitan ka ghar"but sometime yahi shitani kuch aaise khurafato ko janm de deti hai jinka koi jawab nahi hota...fursat k unhi lamho me kuch khurafato ka pratiphal hai "fursatnama"...
प्रातःकालभगवानभुवन-भास्करकीरश्मियोंकेआगमनकेसाथही,गतवर्षकेसंकल्पकाद्रढ़तापूर्वकपालनकरनेकीनियतसेहमनेअपनी "भार्या" कोआदेशितकिया "हेअर्धांगनी,अतिशीघ्रपर्वतीयस्थलोंसेप्राप्तहोनेवाली हरित पत्तियों से निर्मित,दुग्धशर्करामिश्रितउष्णपेयपदार्थचीनी-मिटटीकेबर्तनमेंप्रेषितकरो,ताकिदिनचर्याआरम्भहो,उधरसेफ़ौरनजला-कटाजवाबआया "होशमेंआओ,इतनीलम्बीलम्बीमतछोड़ो,वर्ना "एडिट" होजाओगे ! आपकीकसमभाईसाब,बदनमेंजितनाभी "सीसी" खूनथासबउबलकर "चिकनसूप" बनगया ! कविवरप्रदीपनेयूँहीनहींलिखाहैकि "देखतेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्,कितना बदल गया इंसान....! अभी होते तो ज़रूर लिखते "कहाँ गए भारतेंदु हरिश्चंद्र,कहाँ रहा हिंदी,हिन्दू,हिन्दुस्तान....! हमने समझाने की कोशिश की "अरे भागवान,! एक दिन तो "हिंदी" बोल ! तुझे क्या पता, 14 सितम्बर को "प्रतिवर्ष" हिंदी की "दुर्दशा" पर कितनी "चिंता" की जाती है ! "वातानुकूलित सभागारों" से लेकर "नुक्कड़" तक भाषण,लेख,प्रतियोगिता,सेमीनार वगैरह वगैरह....! पत्नी मुस्कुराई "चींटी" होकर "चूहे" जैसा "बिल" बनाने चले हो ! चार "लाइने" फुर्सतनामा की लिखकर उड़ने लगे हो ! भूल जाओ... ! मै समझ गया भाई साब, "साठ" बरस की "बुढ़िया" पर "बनारसी साड़ी" नहीं फबती है, सो बात बदलने की "गरज" से हमने बाहर झाँका...वह क्या शानदार "जुलूस" है...भक्तों का रेला,बैंड-बाजा,रंग-अबीर-गुलाल...हमने "श्रद्धा" से "सर" झुकाया और जोर से नारा लगाया "गणपति बप्पा मोरिया"...उधर से जवाब आया .."अपना नेता मस्त है...! आपकी कसम झूठ बोलूं तो मेरा मामला भी "सुप्रीम कोर्ट से" सीधे "लोअर कोर्ट" भेज दिया जाये ! हम तो वहीँ खड़े खड़े "अवाक" रह गए..समझ गए ये तो"छात्र-संघ" की "जीत" की "ख़ुशी" में निकला "जुलूस" है.. और "गणपति बप्पा"... वो तो "विसर्जित" होते होते मेरे "सवालिया" "नज़रों" को "भांप" कर "मुस्कुराये" और चुपके से बोले " ये मेरा "विसर्जन" है, "इलेक्शन" नहीं ..मै अगले बरस फिर आऊंगा "हिंदी दिवस"की तरह, तू बिलकुल परेशान ना हो ,क्योंकि हिंदी तो वो "विशाल" ह्रदय वाली पवित्र "गंगा" है,जिसमे "दूसरी भाषाओँ" की तमाम "छोटी-बड़ी" नदियाँ,झरने,नहरें...आ आ कर मिलती है और ये "सबको" अपने में "समाहित" करके "महान" बनी रहती है ! यही इसका "बड़प्पन" है ! एक बात और "संगम" के जल से "सरस्वती" "यमुना" के "जल" को "अलग" करने की "कोशिश" में "गंगा" के "विस्तार" की "संकीर्ण" मत कर! इसकी "शक्ति" "सामर्थ" और "अपनेपन" को "पहचान" ,क्योंकि यही है "सच्चे" अर्थों में "हिंदी" का सम्मान ! हमारी "आँखे" "खुल" गयी ! हम सोचने लगे "क्या ये स्वप्न है"???????
यदि आज्ञा हो तो एक छोटा सा संशोधन करना चाहूंगा."प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी की "दुर्दशा" पर वातानुकूलित सभागारों बैठकर अंग्रेजी जलपान (या पान?)के साथ अंग्रेजी भाषा में कितनी "चिंता" की जाती है ! ".उत्तम कृति है.बधाई.
यदि आज्ञा हो तो एक छोटा सा संशोधन करना चाहूंगा."प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी की "दुर्दशा" पर वातानुकूलित सभागारों बैठकर अंग्रेजी जलपान (या पान?)के साथ अंग्रेजी भाषा में कितनी "चिंता" की जाती है ! ".उत्तम कृति है.बधाई.
ReplyDeleteyessss....very true..as we cant replacew our mother d same way we cant replace our mother tongue.....
ReplyDelete